भारत में आयुर्वेद का ज्ञान बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है और इसी पद्धति से रोगों को ठीक करने के घरेलू नुस्खे काफी प्रचलित है. हमारे जन्म के साथ ही इस पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद से ही शरीर में कोई ना कोई रोग लगा ही रहता है.
लेकिन जैसे-जैसे जीवन शैली बदली और पश्चिमी तथा यूरोपीय जीवन शैली का प्रभाव हमारे समाज पर छाता गया वैसे-वैसे यह घरेलू नुस्खों का ज्ञान सीखने -सिखाने की परंपरा भी खत्म होती जा रही है.
रोगी और रोग बढते जाने कि वजह ये भी है कि हम घरेलू चिकित्सा के नुस्खों से बहुत दूर चले गये हैं और साथ ही खाने-पीने के व्यवहार को भी भूल गये हैं. अर्थात हम ये नहीं जान पाते कि हम क्या खायें और क्या न खायें, साधारण से परिवारों में भी इस तरह कि कोई जानकारी नहीं रहती कि किस मौसम में क्या खाने से कौन-कौन से लाभ होता है, और क्या न खाने से क्या हानि होती हैं.
स्वास्थ्य का वास्तविक अर्थ शरीर निरोगी रहे केवल इतना ही नहीं है, बल्कि शरीर के साथ-साथ मन भी निरोगी रहे. कोई भी बीमारी हमारे शरीर में धीरे-धीरे ही आती है और उसकी शुरूआत कब होती है हमें पता ही नहीं चलता फिर वह बीमारी परिपक्व होती है और उसके लक्षण हमारे शरीर पर प्रकट होने लगते हैं तब हमें पता चलता है.
आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर पंच तत्वों से बना है जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश, आयुर्वेद के ही अनुसार हमारे शरीर में तीन तरह के दोष होते है और वो 1) वात दोष 2) पित्त दोष 3) कफ दोष यह तीनों दोष प्रत्येक मनुष्य में उपस्थित रहते हैं और हमे इन दोषो को कभी नहीं बढ़ने देना चाहिए.
वात दोष
वात का अर्था है वायु तथा आयुर्वेद में वायु को गतिशील कहता हे. इसलिए यह एक प्रकार की ऊर्जा भी है और यह वायु सारे शरीर को संचालित करती है. वायु प्राकृतिक रूप से हल्की और शुष्क होती है. यदि यह अनियमित और दुषित हो जाये तो वायुसंबंधी रोग पैदा होते हैं. आयुर्वेद में वायु पाँच प्रकार की बताई गई है.
1.प्राणवाय – इसका संबंध प्राण वायु साई है.
2.उदान वायु – इसका संबंध भोजन नली से होता है.
3.समान वायु – इसका संबंध आंतों से है इसलिये इसका संबंध भोजन पचाने और मल बनाने की कार्य प्रणाली के संचालन से है.
4.व्यान वायु – इसका संबंध हृदय की कार्य प्रणाली से रहता है
5.आपान वायु – गुदा और मूत्र प्रणाली से संबंधित है, इसलिए इसका उपयोग जो मल त्याग, शुक्राणु निकालने तथा प्रसव को संचालित करना है.
वायु से संबंधित रोगों की चिकित्सा में इसे सिर्फ संतुलित करने की ही कोशिश की जाती है, वायु से संबंधित रोग कई प्रकार के हैं जैसे की पेट में दर्द, घुटनों में दर्द, जोड़ों में दर्द, लकवा, जीभ का अकड़ जाना, सिर में रूसी हो जाना, पैरों में बिवाइयाँ फटना, नींद न आना, पीठ में दर्द आदि, यदि हमें इसकी सही पहचान हो जाये तो हम अच्छी तरह से घरेलू उपाय कर सकते हैं और रोग को धिक कर सकते है.
पित्त दोष
आयुर्वेद में पित्त दोष को उत्तेजक और गतिशील कहा जाता है,यह एक ऊर्जा को दूसरी ऊर्जा में बदलता है. हमारे मस्तिष्क में एक स्थानीय पित्त दोष होता है इसी वजय से पूरा शरीर में रोग प्रजलित होता है.भोजन को पचाने की क्रिया का नियंत्रण पित्त दोष ही करता है. पित्त दोष बुद्धि को भी नियंत्रित रखकर तेज करता है और क्रोध, भय आदि मनोविकारों को भी नियंत्रित करता है. पित्त शरीर के तापमान को भी समान रखता है, पित्त के अनियमित होने पर सभी प्रकार के त्वचा रोग अतिसार, वमन, सिर दर्द से संबंधित बीमारियां होने लगती है.
पित्त रोग अत्यधिक मसालेदार, चिकनाई युक्त, दुषित भोजन करने से,देर रात तक जागने से तथा चिंताग्रस्त होने से होता है.
कफ दोष
आयुर्वेद में कफ, जल और पृथ्वी तत्व से बना है इस लिया ये भारी, अस्थिर और आर्द्र होता है. कफ शरीर को शक्तिशाली तथा ऊर्जा का काम करता है.कफ शरीर के सभी ढांचागत अंगो को एक दुसरे से बांधे रखने का काम करता है.मानसिक शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ रोग निरोधक क्षमता भी बढ़ाता है.जो व्यक्ति भोजन में अत्यधिक मात्रा में मीठे, नमकीन, खट्टे या ठंडे पदार्थ लेते हैं उनका कफ असंतुलित हो जाता है, कफ असंतुलित होने से खाँसी, ज्वर, शरीर दर्द, सुस्ती, मोटापा, अपच आदि रोग फैलने का खतरा बना रहता है.
कृपया इनका अवश्य ध्यान रखें और रोजान इसका पालन करें.
- भोजन के तुरंत बाद अधिक तेज चलना या दौड़ना ख़तरनाक है.
- प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिये और खुली हवा में व्यायाम करना चाहिए ये आपको स्वास्थ रखता है.
- शाम को भोजन के बाद शुद्ध हवा में टहलना चाहिये, तुरंत बाद सो जाने से पेट की बीमारिया व मोटापा होता है.
- तेज धूप,शारीरिक मेहनत या शौच जाने के तुरंत बाद पानी नहीं पिये.
- विरोधी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए जैसा की दूध और कटहल, दुध और दही, मछली और दूध आधी ये अपचन का कारण है.
- रोगी को हमेशा गर्म अथवा गुनगुना पानी पिलाना चाहिये.
- निद्रा से पित्त शांत होता है तथा मालिश से वायु कम होती है, उल्टी से कफ कम होता.
- किसी भी रोगी को तेल, घी या अधिक चिकने पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये.
- सिर पर कपड़ा बांधकर या मोजे पहनकर कभी नहीं सोए.
- फलों का रस, अत्यधिक तेल की चीजें, मट्ठा, खट्टी चीज रात में नहीं खानी चाहिये.